Skip to main content

जब दिखावे ने देश को दासता के दलदल में धकेल दिया

आज मैं आपको तीन कहानियाँ बताता हूँ।

1.एक बार एक राजा था वह गुप्तभजनान्दी था। राजा मन ही मन में प्रभु स्मरण किया करता था। उसके मुँह से कभी किसी ने ईश्वर का नाम नहीं सुना। यहाँ तक कि उसके दरबारियों, कर्मचारियों, अधिकारियों व रानी ने भी कभी राजा को भजन करते, सत्संग में जाते, मंदिर में जाते नहीं देखा। रानी कई बार शिकायत भी किया करती थी कि आप हमेशा राज-काज में ही उलझे रहते हैं कभी ईश्वर की भक्ति के लिये भी समय निकाला कीजिये। राजा हँसकर बात टाल दिया करता था।

एक दिन अर्द्धरात्रि का समय था। राजा सो रहा था। रानी अभी भी जग रही थी। अचानक राजा के मुख से राम शब्द निद्रा में निकल गया। रानी पहले तो बड़ी अचम्भित हुयी। फिर बड़ी ही प्रसन्न हुयी कि चलो निद्रित अवस्था में ही सही इतने वर्षों में एक बार ही सही; ईश्वर का नाम तो निकला। रानी ने इस मौके को मनाने के लिये अपने सेवकों को वाद्ययंत्र बजाने का आदेश दिया। अर्द्धरात्रि के समय में अचानक स्वर लहरियां सुनकर राजा अचकचा कर जग गया। राजा ने सोचा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि राजप्रासाद में असमय वाद्ययंत्र बज उठे। राजा ने रानी से इसका कारण जानना चाहा। रानी ने बताया महाराज आपके श्रीमुख से जीवन में प्रथम बार राम नाम निकला। मैं तो धन्य हुई वर्ना इस जन्म में तो मैंने आश ही छोड़ दी थी। राजा ने बस इतना ही कहा कि मेरे मुख से राम नाम निकल गया ? मेरे प्राण भी निकल जायें। तत्क्षण राजा का शरीर निष्प्राण हो गया। रानी को कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर मुझसे त्रुटि कहाँ रह गयी। अचानक से राजप्रासाद का उत्सव राष्ट्रीय शोक दिवस में परिणीत हो गया। सब कुछ थम सा गया। 

नहीं समझे ? जरा सोचिये वह राजा कितना बड़ा तपस्वी था जिसका अपनी आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण था व मनमर्जी से देहत्याग कर सकता था। यह तो बड़े-बड़े साधुओं को भी प्राप्य नहीं है। दूसरी बात वह राम नाम स्मरण को इतना पवित्र मानता था कि कभी इसका दिखावा नहीं किया या यूँ कहें जीवनपर्यंत। तीसरी बात वह कितना बड़ा विदेही था कि जिस रानी को सात जन्मों के बंधन में बांध कर लाया था उसे अंतिम बार बिना एक शब्द भी कहे प्राण त्याग दिये। आजकल तो धर्म की आत्मा जो कि ईश्वर को जानना व अपने आप को जानना है उसे ही लोप कर दिया गया है बस दिखाया बचा है।

2. एक फकीर का विवाह एक दुसरे फकीर की बेटी से हुआ। विवाह के उपरांत जब पत्नी पति के साथ पति के घर पहुँची तो पाया कि घर के नाम पर बस एक झोंपड़ी ही है। जब पत्नी झोंपड़ी में झाँकी तो देखा एक चूल्हा व पानी का मटका व कुछ बर्तन हैं। सोने के लिये एक पुरानी दरी है। तभी पत्नी की नजर रोटी रखने के बर्तन पर गयी तो पाया कि उसमें आधी रोटी रखी है। इधर फकीर लज्जित महसूस कर रहा था कि पत्नी मेरे बारे में क्या सोच रही होगी ? तभी पत्नी ने प्रश्न दागा यह आधी रोटी ? फकीर ने उत्तर दिया कि यह आधी रोटी बच गयी थी। मैंने शाम के लिये रखी है। पत्नी ने क्रोध भरे लहजे में फकीर को फटकारते हुए कहा लगता है तुम्हें उस पर तनिक भी भरोसा नहीं है जिसने तुम्हें सवेरे खाना खाने के लिये दिया। अनावश्यक चिंता व संग्रह तो फकीरी नहीं है। फकीर सन्न रह गया। अब उसे सचमुच में अपने आप पर लज्जा आ रही थी। अपनी पत्नी के विराट चरित्र के समकक्ष वह अपने आपको बौना महसूस कर रहा था। दूसरी तरफ धन्य भी महसूस कर रहा था कि उसे ऐसी जीवनसाथी मिली।

नहीं समझे ? दो पहियों पर सुगमता से चलने वाली गाड़ी की तरह भक्ति और भी आसान हो जाती है जब आपका जीवनसाथी भी आपकी टक्कर का हो व आपसे बीस हो। ऐसे दाम्पत्य जीवन में पत्नी भक्ति में बाधक नहीं साधक बनती है।

3. जब पश्चिमी देश से एक व्यापारी जहाज भारत के एक राज्य के समुद्री तट पर आ लगा तो व्यापारी बड़े प्रसन्न हुए कि अंततः सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश में पहुँच ही गये। व्यापारी बाद में स्थानीय राजा से मिलने गये व अपने हिसाब से उपहार भी ले गये। व्यापारी राजा के दरबार में बातचीत कर रहे थे तभी एक व्यापारी को प्यास लगी। व्यापारी ने पानी माँगा। राजा ने कहा अभी मँगवाते हैं। राजा ने अपने तय तरीके से ताली बजाई। कुछ ही क्षण बीते होंगे कि अचानक पीछे से वाद्ययंत्रों की सुमधुर ध्वनियाँ सुनाई देने लगी व पीछे मुड़ कर देखा तो तीन-चार दासियाँ रत्न-जड़ित स्वर्ण थालियाँ लिये चाँदी के गिलासों में पानी लिये खड़ी हैं। पानी पिया जो कि केवड़े से सुवासित था। बड़ा विस्मयकारी दृश्य था। पानी पीकर शरीर तो एक बार तृप्त हो गया था। लेकिन विदेशी व्यापारियों के मन एक अलग ही खिचड़ी पकने लग गयी थी।

व्यापारियों ने सोचा कि पानी के लिये इतनी नौटंकी अर्थात अथाह धन सम्पदा। अब उनका मन बदल चुका था। कुछ दिन नगर में रहे। मौका देखकर व्यापार का पत्र भी जारी करवा लिया। फिर उन्होंने वही किया जो राजस्थानियों ने असमियों के साथ किया। कालान्तर में अलग-अलग भूखे देशों से लोग व्यापारी बनकर आये व भाग्य विधाता बन बैठे। जी भरकर देश को लूटा खसोटा। बाकी का इतिहास आप सबको पता ही है हमारे बुजुर्गों को कितना जोर आया उनको भगाने में शताब्दियाँ लग गयीं।

आशा करता हूँ आपको लेख जरूर पसंद आयेगा। अच्छा लगे तो अग्रेषित कीजिये व त्रुटियों पर ध्यानाकर्षित कीजिये। 
आपका राजेश कुमार जाँगिड़ 

Comments

Popular posts from this blog

नोटबंदी भाग 2

प्रिय भारतवासियों, नोटबंदी भाग 2 की घोषणा हो चुकी है। जिस उद्देश्य के लिये नोटबंदी थोपी गई थी वह केन्द्र के अनुसार पूर्ण हो चुका है। अर्थात जिस काले धन के लिये नोटबंदी की गई थी वह कालाधन सरकार के पास आ चुका है। बस थोड़ी सी प्रतीक्षा की व धैर्य दिखाने की जरूरत है जिसमें आप पारंगत हैं। बहुत जल्दी ही आपको सरकारी कारिंदे 10-15 लाख रूपये घर-घर बाँटते दृष्टिगोचर होंगे। अब केन्द्र सरकार दावे के साथ कह सकेगी कि हम सिर्फ जुमलेबाजी ही नहीं करते हैं बल्कि काला धन सचमुच में देश हित में खपा भी सकते हैं। जब तक आपको 10-15 लाख नहीं मिलते हैं तब तक आपको बताया जा चुका है कि आपको क्या करना है। आप तो बस केन्द्र सरकार या सीधा यूँ कहें कि वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सुझाये गये उपाय करते रहिये आपका जीवन सफल होगा उदाहरणार्थ :- पकौड़े तलकर बेचना, चाय बेचना, गैस की जरूरत पड़े तो बेझिझक गंदे नाले में पाइप डालकर गैस बनाना इत्यादि। अगर ज्यादा समय लगे तो लगे हाथ चार साल सेना में घूमकर आ जाइये। आम के आम और गुठलियों के दाम। जब तक आप सेना से वापस आ जायेंगे तब तक आपके घर काला धन भी वितरित कर दिया

राजा विद्रोही सरकार सेना व शत्रु - 1971 का युद्ध

यह कहानी आपसी विश्वास, मानवीय ह्रदय परिवर्तन व मातृभूमि के लिये अपने आपसी मतभेद भूलकर एकजुट होकर शत्रु को पराजित करने की है। जैसा आप फिल्मों में भी देखते हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र एक राजा व एक विद्रोही हैं। लेखक ने बड़े ही सजीवता पूर्ण तरीके घटना का चित्रण किया है। आप स्वयं को एक किरदार की तरह कहानी में उपस्थित पायेंगे।  एक राजा था एक विद्रोही था।  दोनों ने बंदूक उठाई –  एक ने सरकार की बंदूक।  एक ने विद्रोह की बंदूक।। एक की छाती पर सेना के चमकीले पदक सजते थे।। दूसरे की छाती पर डकैत के कारतूस।।  युद्ध भी दोनों ने साथ-साथ लड़ा था। लेकिन किसके लिए ?  देश के लिए अपनी मिट्टी के लिये, अपने लोगों के लिए मैंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि "म्हारा दरबार राजी सूं सेना में गया और एक रिपयो तनखा लेता" इस कहानी के पहले किरदार हैं जयपुर के महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह राजावत जो आजादी के बाद सवाई मान सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी हुए। दूसरा किरदार है, उस दौर का खूँखार डकैत बलवंत सिंह बाखासर। स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों और ठिकानों का विलय हुआ तो सरकार से विद्रोह कर सैकड़ों राजपूत विद्रोही

एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता

क्या एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिकृत हैं ?  नहीं समझे ? चलिये सविस्तार बताता हूँ। अगर आपको एक भारतीय व भारतीयता संस्कृति व सभ्यता की कल्पना करने को कहा जाये तो आपके मानस पटल पर क्या छवि उभर कर सामने आयेगी ? मैं बताता हूँ। रंग गेहुंआ, लम्बाई 5 से 6 फीट, पुरूष के लिए वस्त्र पैंट, शर्ट, स्त्री के लिए धोती, ब्लाउज, गहने नाक, पाँव, हाथ व गले के आभूषण व लम्बे बाल। शादी की बात की जाये तो दुल्हे का घोड़ी पर बैठना, नाचना-गाना, खाना खाना, फेरे व दहेज के साथ विदाई। एक पति व पत्नी की सात जन्मों की कामना। अन्य दिनों में घर पर खाने की बात की जाये तो रोटी-सब्जी, दूध-दही व मीठा। परमगति हो जाये तो राम-नाम सत्य के साथ जला देना बच्चा व साधू है तो दफना देना। विद्यालय में जाना व पढना। बड़े होकर नौकरी या व्यवसाय करना। बच्चों से इज्जत की आशा व सुखद बुढापा। कुछ अपसकुन मानना। भगवा कपड़े पहनने वाले हिन्दू साधू को पूजना व मन्दिरों में चक्कर लगाना। गाँव के हैं तो पशुपालन या खेती। चौपाल पर चर्चा करते लोग। पुरातन समृद्ध संस्कृति व सभ्यता का बखान। अपनी जातीय महानता का दंभपूर्ण