Skip to main content

एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता

क्या एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिकृत हैं ? 

नहीं समझे ?
चलिये सविस्तार बताता हूँ। अगर आपको एक भारतीय व भारतीयता संस्कृति व सभ्यता की कल्पना करने को कहा जाये तो आपके मानस पटल पर क्या छवि उभर कर सामने आयेगी ?
मैं बताता हूँ। रंग गेहुंआ, लम्बाई 5 से 6 फीट, पुरूष के लिए वस्त्र पैंट, शर्ट, स्त्री के लिए धोती, ब्लाउज, गहने नाक, पाँव, हाथ व गले के आभूषण व लम्बे बाल।
शादी की बात की जाये तो दुल्हे का घोड़ी पर बैठना, नाचना-गाना, खाना खाना, फेरे व दहेज के साथ विदाई। एक पति व पत्नी की सात जन्मों की कामना। अन्य दिनों में घर पर खाने की बात की जाये तो रोटी-सब्जी, दूध-दही व मीठा। परमगति हो जाये तो राम-नाम सत्य के साथ जला देना बच्चा व साधू है तो दफना देना। विद्यालय में जाना व पढना। बड़े होकर नौकरी या व्यवसाय करना। बच्चों से इज्जत की आशा व सुखद बुढापा। कुछ अपसकुन मानना। भगवा कपड़े पहनने वाले हिन्दू साधू को पूजना व मन्दिरों में चक्कर लगाना। गाँव के हैं तो पशुपालन या खेती। चौपाल पर चर्चा करते लोग। पुरातन समृद्ध संस्कृति व सभ्यता का बखान। अपनी जातीय महानता का दंभपूर्ण महिमामंडन इत्यादि-इत्यादि। यह एक छोटी सी झलक है जो हर भारतीय के मन में है। लेकिन क्या यही भारतीय होने व भारतीयता की निशानी है ? जी नहीं यह भारतीयता की नहीं बस एक खास बहुमत का प्रतिबिम्ब है और कुछ भी नहीं। अब मैं संक्षेप में बताता हूँ कि मैंने ऐसा क्यों कहा अगर विस्तारपूर्वक बताया तो एक उपन्यास लिखना पड़ेगा शायद फिर यह एक महाकाव्य बन जायेगा वो भी महाभारत से बड़ा। समयाभाव है इसलिये संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ जो अब तक भारत में व विदेश में रहकर जाना है जी हाँ आपको भारतीयता के अनजान पहलुओं को समझने में विदेश से भी सहायता मिलती है। चलिये शुरू करते हैं। बिना लाग-लपेट के।
एक मध्य भारतीय,थोड़ा सा उत्तर का हिस्सा व उत्तर - पश्चिमी भारतीय का रंग-रूप, कद-काठी भिन्न होता है बनिस्पत एक दक्षिण भारतीय, उत्तर-पूर्वी भारतीय व सुदूर उत्तर में कश्मीर व लेह-लद्दाख के निवासी के। कभी आपके मस्तिष्क में आता है अगर एक उतर-पूर्व भारतीय को अगर आप विदेश में देखेंगे तो क्या आप उसे भारतीय मानेंगे ? आप उसे शत-प्रतिशत चीनी, कोरियन, वियतनामी, जापानी या ताईवानी समझेंगे जब तक वह आपको बता न दे क्योंकि आपकी दृष्टि में तो भारतीय सिर्फ आप जैसा ही हो सकता है ? गुजरात व कर्नाटक का सिद्दी (यह सिंधी नहीं सिद्दी ही है। सिंधी अलग होते हैं।) अगर आपको कहीं मिल जाये तो आप उसे भारतीय न कहकर अफ्रीकन ही कहेंगे। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह व उत्तरी सेनिटाइल द्वीपों का मूल निवासी अगर आपसे टकरा जाये तो आप दंभपूर्वक उसे अफ्रीकन ही कहेंगे जबकि सत्य वचन यह है। सिद्दियों को छोड़ दिया जाये तो जिन द्वीपों के मूल निवासियों का वर्णन मैंने किया है वे भारत की धरती पर आपसे भी पहले के हैं। आपके प्रिय धर्म से भी पहले के। कभी दिल्ली में आपने उन्हें अपने अधिकारों के लिये चिल्लाते हुए आपने उन्हें सुना ?

भाषा की बात की जाये तो आपको पता है कि एक आपकी हिन्दी या संस्कृत ही नहीं है। जिस संस्कृत को आपने सब भाषाओं की जननी घोषित कर रखा है उसका एक भी शब्द आपको उन द्वीपीय लोगों की भाषाओं में नहीं मिलेगा वे भी भारतीय हैं।

वस्त्रों की बात की जाये तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा इत्यादि की महिलायें जैसी धोती पहनती हैं वैसी ही धोती महाराष्ट्र में नहीं। इन राज्यों में जैसे पुरूष धोती पहनते हैं वैसी महाराष्ट्र में महिलायें। आप कहते हैं औरत साड़ी में शालीन लगती है कमीज में नहीं जरा हरयाणवी महिलाओं को देखना। खुलेपन की बात की जाये तो अपने देवताओं व देवियों के वस्त्रों पर एक दृष्टि डालना। 
एक चीनी भाषी भारतीय हो सकता है। कलकत्ता में चीनी भारतीय आपको मिल जायेंगे। थोड़े यहूदी भारत में अभी भी हैं। कम हैं लेकिन है। पारसियों के धन वर्चस्व से तो आप भली-भांति परिचित। तिब्बती भारतीय भी हैं। 
आपके हिसाब से दुल्हा ही दुल्हन को लेने जाता है लेकिन उन परिवारों का क्या जहाँ महिला घोड़ी पर चढकर जाती है। आपका भ्रम वैसा ही है जैसे लोग बोलते हैं सात फेरे मगर वास्तविकता में हमारे यहाँ मैंने कभी सात फेरे किसी विवाह में नहीं देखे। कहीं दूर होते होंगे पता नहीं। ऐसे भी समुदाय हैं जहाँ लड़की लड़के के पास रहने चली जाती है परिवार बन जाता है। कभी बुढ़ापे में विवाह रचाते हैं अपने पोतों के सामने। कभी करते ही नही जीवनभर। बिना विवाह संतानोत्पत्ति भी हमारी ही सभ्यता का हिस्सा है। आपको न पचे तो आपकी अज्ञानता। 5 भाईयों की एक पत्नी भी भारतीयता का ही हिस्सा है।(मैं महाभारत की बात नहीं कर रहा यह प्रथा कहीं कहीं अभी भी जीवित है।) कहीं-कहीं हिन्दू भी दफनाते हैं। वो भी भारतीय हैं। कहीं-कहीं बहनें भाई को राखी नहीं बाँधती। वे भी राजस्थानी भारतीय ही है। कहीं साधू भगवा पहनते हैं कहीं सफेद तो कहीं काला। कहीं मात्र लंगोट तो कहीं बिल्कुल नंगे तो कहीं एक चादर ही लपेटते हैं। कोई साधू मुंडन करवाये रखता है तो कोई बाल कटवाता ही नहीं है। कोई स्त्री से 10 कदम दूर ही रहता है तो कोई भैरवी साधना में स्त्री को ही प्रधान मानता है। कोई साधू शुद्ध शाकाहारी है तो कोई मांस मदिरा बगैर कुछ खाते ही नहीं हैं तो कोई सर्वभक्षी भी होते हैं। किसी पंथ में कान फड़वाने पर ही पक्का माना जाता है। यह सब भारतीय ही है। यह भी भारतीयता को ही जी रहे हैं। कोई साधू समाज में प्रवेश भी नहीं करता तो कोई समाज को छोड़कर जाता ही नहीं। कोई ध्यान, तो कोई भजन, तो कोई गौ सेवा, तो कोई गांजा-सुल्फा व शराब, तो कोई स्त्री को ईश प्राप्ति का साधन मानता है। सारे ही साधु दफनाये ही नहीं जाते हैं कई जगह साधू को भी जलाया जाता है।
कोई शाकाहारी नहीं है तो वो भारतीयता की लाज नहीं रख सकता किसने कहा आपको ? मध्य भारत व उत्तर-पश्चिम भारत को निकाल दें तो अधिकांशतः मांसाहारी ही हैं। क्या वे भारतीय नहीं। नास्तिक, द्वैत, अद्वैत, शाक्त, निराकार को मानने वाले क्या आपके लिये सनातनी भारतीय नहीं हैं ? क्या गाँवों में कुक्कुटपालन व मत्स्यपालन पहले नहीं होता था। बंगाल में व दक्षिण भारत में तो मछली सब्जी के समान मानी जाती है। कई राज्यों में सदियों से गौ, शूकर, कुकुर, महिष अन्यादि पशुओं को खाया जाता है तो क्या वे नराधम व पातकी व गये ?

गलियों में आधार कार्ड मांगकर भगवा कपड़े पहनने वालों को पीटने वाले गुंडों को तो इस बात का भान भी नहीं है कि मुस्लिम समाज के हजारों लोग गलियों में हजारों सालों से गुरू गोरखनाथ के गुणगान गाकर पेट भरते आये हैं। कारण यह है पूर्व में उनकी पीढियों में धर्म परिवर्तन हो गया था लेकिन उन्होंने गायन नहीं छोड़ा भले धर्म छोड़ दिया हो। लेकिन आज के बदलते परिवेश में उन्हें भी भय रहता है कि कोई भी सिरफिरा उन्हें पीट देगा। आज मैं अगर अकेला 50 किमी दूर से पैदल गाय ला रहा हूँ तो कोई भी मुझे गाय चोर बताकर मार सकता है। एक बार भीड़ को इकट्ठी कर लो भीड़ हाथ साफ पहले करती है पूछती बाद में। सारांश यह है कि आज एक सामान्य भारतीय मनुष्य की नजर में भारतीय संस्कृति व भारतीय सभ्यता वही है जो उसने अभी तक जिया है या देखा है। यही वर्तमान में झगड़े की जड़ व एक महती समस्या है। अब तर्क-वितर्क के नाम पर कुतर्क या लाठियाँ दिखाई देती हैं। पहले शास्त्रार्थ समाप्ति पर पराजित मनुष्य नये वाद को अपनाने का प्रयत्न करता था अब ऐसा नहीं है। किसी भी टेलीविजन पर समाचार चैनल पर जाइये। आपको 8 से 10 महारथी बैठे मिल जायेंगे। एक भी दूसरे की सुनने को तैयार नहीं। आँख बंद करके अगर आप उन्हें सुनेंगे तो आपको सब्जी बाजार की तरह एक ही आवाज सुनाई देगी, गाजर-मूली, गाजर-मूली, गाजर-मूली।
लेख अच्छा लगे तो अग्रेषित करना व त्रुटि लगे तो ध्यानाकर्षित करना। 
आपका - राजेश कुमार जाँगिड़ 

Comments

Popular posts from this blog

राजा विद्रोही सरकार सेना व शत्रु - 1971 का युद्ध

यह कहानी आपसी विश्वास, मानवीय ह्रदय परिवर्तन व मातृभूमि के लिये अपने आपसी मतभेद भूलकर एकजुट होकर शत्रु को पराजित करने की है। जैसा आप फिल्मों में भी देखते हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र एक राजा व एक विद्रोही हैं। लेखक ने बड़े ही सजीवता पूर्ण तरीके घटना का चित्रण किया है। आप स्वयं को एक किरदार की तरह कहानी में उपस्थित पायेंगे।  एक राजा था एक विद्रोही था।  दोनों ने बंदूक उठाई –  एक ने सरकार की बंदूक।  एक ने विद्रोह की बंदूक।। एक की छाती पर सेना के चमकीले पदक सजते थे।। दूसरे की छाती पर डकैत के कारतूस।।  युद्ध भी दोनों ने साथ-साथ लड़ा था। लेकिन किसके लिए ?  देश के लिए अपनी मिट्टी के लिये, अपने लोगों के लिए मैंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि "म्हारा दरबार राजी सूं सेना में गया और एक रिपयो तनखा लेता" इस कहानी के पहले किरदार हैं जयपुर के महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह राजावत जो आजादी के बाद सवाई मान सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी हुए। दूसरा किरदार है, उस दौर का खूँखार डकैत बलवंत सिंह बाखासर। स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों और ठिकानों का विलय हुआ तो सरकार से विद्रोह कर सैकड़ों राजपूत विद्रोही

आपके ध्यानाकर्षण के लिए।

 पश्चिमी देशों में बच्चे गुंडे मवालियों सा अमर्यादित व्यवहार क्यों करते हैं ?  पूर्वी देशों में बच्चों को नैतिक मूल्यों और नैतिकता की शिक्षा दी जाती है।  माता-पिता को बुरा लगता है अगर उनके बच्चे अपशब्द बोलते हैं।  यदि आप अपशब्द बोल रहे हैं तो अजनबी भी आपको सार्वजनिक रूप से टोक सकते हैं।  इन देशों में संयुक्त परिवार प्रणाली है। पश्चिमी देशों की तरह अनावश्यक हस्तक्षेप करने वाली कोई सरकारी संस्था नहीं है। जबकि पश्चिमी देशों में यह बहुत ज्यादा है।  बच्चे बचपन से ही बिगड़ैल होते हैं।  गाली देना वे अपने माता-पिता से सीखते हैं, टेलीविजन से व अपने अपने परिवेश से भी ।  माता-पिता को कोई भी आपत्ति नहीं होती है क्योंकि यह उनकी अपनी मानसिकता के अनुसार सामान्य है। मैं उन पूर्वी देशों के माता-पिता का समर्थन नहीं कर रहा हूं जो अपने बच्चों पर अत्याचार करते हैं, मैं उन पश्चिमी माता-पिता का भी समर्थन नहीं कर रहा हूं जो अपने बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं। यदि आप अपने बच्चे को हर समय तंग करते हैं तो वह या तो डरपोक होगा या विद्रोही इसके विपरीत यदि आप अपने बच्चों को बिगाड़ते हैं और उनकी गतिविधियों को

नोटबंदी भाग 2

प्रिय भारतवासियों, नोटबंदी भाग 2 की घोषणा हो चुकी है। जिस उद्देश्य के लिये नोटबंदी थोपी गई थी वह केन्द्र के अनुसार पूर्ण हो चुका है। अर्थात जिस काले धन के लिये नोटबंदी की गई थी वह कालाधन सरकार के पास आ चुका है। बस थोड़ी सी प्रतीक्षा की व धैर्य दिखाने की जरूरत है जिसमें आप पारंगत हैं। बहुत जल्दी ही आपको सरकारी कारिंदे 10-15 लाख रूपये घर-घर बाँटते दृष्टिगोचर होंगे। अब केन्द्र सरकार दावे के साथ कह सकेगी कि हम सिर्फ जुमलेबाजी ही नहीं करते हैं बल्कि काला धन सचमुच में देश हित में खपा भी सकते हैं। जब तक आपको 10-15 लाख नहीं मिलते हैं तब तक आपको बताया जा चुका है कि आपको क्या करना है। आप तो बस केन्द्र सरकार या सीधा यूँ कहें कि वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सुझाये गये उपाय करते रहिये आपका जीवन सफल होगा उदाहरणार्थ :- पकौड़े तलकर बेचना, चाय बेचना, गैस की जरूरत पड़े तो बेझिझक गंदे नाले में पाइप डालकर गैस बनाना इत्यादि। अगर ज्यादा समय लगे तो लगे हाथ चार साल सेना में घूमकर आ जाइये। आम के आम और गुठलियों के दाम। जब तक आप सेना से वापस आ जायेंगे तब तक आपके घर काला धन भी वितरित कर दिया