भारत में चिकित्सकों को भगवान का दर्जा दिया गया है। लेकिन वर्तमान में क्या वो इस तमगे के लायक रहे भी हैं या नहीं ? आज का बिन्दू इसी पर आधारित है। कहते हैं कि गंभीर बीमारियों से निजात पाने के बाद मनुष्य अपने आप को धन्य मानते हुए इसे अपना पुनर्जन्म मानता है। हर रोगी ईश्वर को धन्यवाद देते हुये चिकित्सक को भी वही दर्जा देता है व यह बात जरूर कहता है कि आप मेरे लिये भगवान साबित हुये। चिकित्सक भी सफल निदान के बाद राहत महसूस करता है। अगर निदान अभूतपूर्व हुआ तो अनुसंधान पत्रिका में छपने के लिए भेज देता है। यह तो हुई सामान्य अपेक्षा जो हम सबको रहती है। अब बात करते हैं वस्तुस्थिति की। ध्यान रहे यह मेरा राजेश कुमार जाँगिड़ का निजी आंकलन है। आपका दृष्टिकोण व अनुभव अलग हो सकता है। आज अधिकाँश चिकित्सकों ने पुरातन साहूकारों सा व्यवहार करना शुरू कर दिया है। आपको प्रेमचन्द की सवा सेर गेहूँ तो याद ही होगी। एक बार इन चिकित्सकों के पंजे में आये बाद में निकलना मुश्किल है पानी के भँवर की तरह जब तक आपका ईश्वर ही आपकी कोई सुनवाई न कर ले। लेकिन लगता है ईश्वर ने भी नारकीय प्रताड़ना का ठेका धरती पर ही दे दिया है।