Skip to main content

नोटबंदी भाग 2

प्रिय भारतवासियों,
नोटबंदी भाग 2 की घोषणा हो चुकी है। जिस उद्देश्य के लिये नोटबंदी थोपी गई थी वह केन्द्र के अनुसार पूर्ण हो चुका है। अर्थात जिस काले धन के लिये नोटबंदी की गई थी वह कालाधन सरकार के पास आ चुका है। बस थोड़ी सी प्रतीक्षा की व धैर्य दिखाने की जरूरत है जिसमें आप पारंगत हैं। बहुत जल्दी ही आपको सरकारी कारिंदे 10-15 लाख रूपये घर-घर बाँटते दृष्टिगोचर होंगे।

अब केन्द्र सरकार दावे के साथ कह सकेगी कि हम सिर्फ जुमलेबाजी ही नहीं करते हैं बल्कि काला धन सचमुच में देश हित में खपा भी सकते हैं। जब तक आपको 10-15 लाख नहीं मिलते हैं तब तक आपको बताया जा चुका है कि आपको क्या करना है। आप तो बस केन्द्र सरकार या सीधा यूँ कहें कि वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सुझाये गये उपाय करते रहिये आपका जीवन सफल होगा उदाहरणार्थ :- पकौड़े तलकर बेचना, चाय बेचना, गैस की जरूरत पड़े तो बेझिझक गंदे नाले में पाइप डालकर गैस बनाना इत्यादि। अगर ज्यादा समय लगे तो लगे हाथ चार साल सेना में घूमकर आ जाइये। आम के आम और गुठलियों के दाम। जब तक आप सेना से वापस आ जायेंगे तब तक आपके घर काला धन भी वितरित कर दिया जायेगा।

भारतीय रिजर्व बैंक कहती हैं कि 99.3% भारतीय मुद्रा (500 व 1000 के बंद नोट) वापस आ चुकी है। जिसमें नेपाल, म्यांमार व बांग्लादेश में पड़े नोट शामिल नहीं हैं नहीं तो यह आँकड़ा शत-प्रतिशत ही होता। बैंक वालों ने उस समय कितना ही भ्रष्टाचार किया क्या हुआ ? काफी लोग खड़े-खड़े नोट बदलवाने की लाइनों मे मर गये। आज तक आपके प्रधानमंत्री ने एक बार भी जनता से क्षमा याचना नहीं की है।

इससे भी बड़ी बात तो यह है कि 2000 रूपये का बड़ा नोट चलाने का जो मूर्खतापूर्ण निर्णय लिया गया था उसे स्वीकार करने में भी वर्षों लगा दिये। मूर्खतापूर्ण इसलिये कह रहा हूँ कि जब 1000 रूपये का नोट यह कहकर बंद कर दिया गया कि भ्रष्टाचारी बड़े नोट रखते हैं इसलिये बंद करने पर काला धन वाले बर्बाद हो जायेंगे। फिर उससे बड़ा 2000 का नोट जारी करने का कोई कारण समझ में नहीं आता। रिजर्व बैंक द्वारा कुतर्क यह दिया जा रहा है कि नोटों की कमी महसूस न हो इसलिये 2000 रूपये का नोट लाया गया। इसका अर्थ तो स्पष्ट है कि आपने नोटबंदी की कोई योजना नहीं बनाई। आपके पास 500 के पर्याप्त नये नोट ही नहीं थे तो फिर नोटबंदी घोषित करने की जल्दबाजी क्यों की ? कोई मुहूर्त तो निकला नहीं जा रहा था ? पहले व्यवस्था कर लेते तो लोगों को अपने प्राणों से हाथ नहीं धोना पड़ता। लोगों के काम-धंधे ठप्प नहीं पड़ते। अरूण जेटली का वह उत्तर तो आपको याद ही होगा जब रजत शर्मा ने पूछा था कि विवाह में भी समस्या आ रही है तो जेटली ने कहा था कि घोड़ी वाले को चैक दीजिये। बोलते हुये भी शर्म नहीं आई कि जब बैंक ही ठप्प थे तो चैक कहाँ से आयेंगे व घोड़ी क्या चैक आयेगी ? 10 रूपये की फूल माला वाला चैक लेगा ? 5 रूपये की चाय वाला चैक लेगा और वो भी स्टैण्ड पर अनजान आदमी से ? लोगों को समय पर इलाज नहीं मिला। बस में समोसे बेचने वाला क्या भी चैक लेगा? विवाह निरस्त हो गये। लोगों के माल के आदेश निरस्त हो गये। आप लोग बड़ी जल्दी भूल गये ? 

इस बार तो घोटाला या यूँ कहें कि गड़बड़झाला इससे भी बड़ा है। इस बार गोदी मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि इस बार आम आदमी प्रभावित नहीं होगा। अच्छा तो पहली नोटबंदी को तो उसी दिन तुरंत प्रभाव से नोटों को रद्दी घोषित कर दिया गया था। इस बार 3 महीने का समय क्यों दिया गया है। बिना फॉर्म भरे क्यों बदले जा रहे हैं ? संकेत स्पष्ट हैं धनाढ्य मित्रों की पूर्ण मनोयोग से सहायता। ऐसे निर्णयों को हिन्दी में तुगलकी फरमान की संज्ञा दी जाती है। देश का भला कैसे होगा जहाँ बजरंग दल नामक दल पर प्रतिबंध बजरंग बली पर प्रतिबंध बताकर दुष्प्रचारित किया जाता है। बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसी कोई और नोटबंदी न देखने को मिले जहाँ पेट्रोल पंप वाला स्कूटर से पाइप डालकर वापस तेल निकाल ले क्योंकि अब वह 2000 का नोट लेने में हिचकिचा रहा है। (कल ही एक ऐसा वीडियो देखा था। 😜😜😜

आशा करता हूँ कि इसे आप किसी को निशाना बनाकर लिखा गया नहीं मानेंगे।

आपका राजेश कुमार जाँगिड़

Comments

Popular posts from this blog

राजा विद्रोही सरकार सेना व शत्रु - 1971 का युद्ध

यह कहानी आपसी विश्वास, मानवीय ह्रदय परिवर्तन व मातृभूमि के लिये अपने आपसी मतभेद भूलकर एकजुट होकर शत्रु को पराजित करने की है। जैसा आप फिल्मों में भी देखते हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र एक राजा व एक विद्रोही हैं। लेखक ने बड़े ही सजीवता पूर्ण तरीके घटना का चित्रण किया है। आप स्वयं को एक किरदार की तरह कहानी में उपस्थित पायेंगे।  एक राजा था एक विद्रोही था।  दोनों ने बंदूक उठाई –  एक ने सरकार की बंदूक।  एक ने विद्रोह की बंदूक।। एक की छाती पर सेना के चमकीले पदक सजते थे।। दूसरे की छाती पर डकैत के कारतूस।।  युद्ध भी दोनों ने साथ-साथ लड़ा था। लेकिन किसके लिए ?  देश के लिए अपनी मिट्टी के लिये, अपने लोगों के लिए मैंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि "म्हारा दरबार राजी सूं सेना में गया और एक रिपयो तनखा लेता" इस कहानी के पहले किरदार हैं जयपुर के महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह राजावत जो आजादी के बाद सवाई मान सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी हुए। दूसरा किरदार है, उस दौर का खूँखार डकैत बलवंत सिंह बाखासर। स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों और ठिकानों का विलय हुआ तो सरकार से विद्रोह कर सैकड़ों राजपूत विद्रोही

एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता

क्या एकमात्र आप व आपका मस्तिष्क ही भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिकृत हैं ?  नहीं समझे ? चलिये सविस्तार बताता हूँ। अगर आपको एक भारतीय व भारतीयता संस्कृति व सभ्यता की कल्पना करने को कहा जाये तो आपके मानस पटल पर क्या छवि उभर कर सामने आयेगी ? मैं बताता हूँ। रंग गेहुंआ, लम्बाई 5 से 6 फीट, पुरूष के लिए वस्त्र पैंट, शर्ट, स्त्री के लिए धोती, ब्लाउज, गहने नाक, पाँव, हाथ व गले के आभूषण व लम्बे बाल। शादी की बात की जाये तो दुल्हे का घोड़ी पर बैठना, नाचना-गाना, खाना खाना, फेरे व दहेज के साथ विदाई। एक पति व पत्नी की सात जन्मों की कामना। अन्य दिनों में घर पर खाने की बात की जाये तो रोटी-सब्जी, दूध-दही व मीठा। परमगति हो जाये तो राम-नाम सत्य के साथ जला देना बच्चा व साधू है तो दफना देना। विद्यालय में जाना व पढना। बड़े होकर नौकरी या व्यवसाय करना। बच्चों से इज्जत की आशा व सुखद बुढापा। कुछ अपसकुन मानना। भगवा कपड़े पहनने वाले हिन्दू साधू को पूजना व मन्दिरों में चक्कर लगाना। गाँव के हैं तो पशुपालन या खेती। चौपाल पर चर्चा करते लोग। पुरातन समृद्ध संस्कृति व सभ्यता का बखान। अपनी जातीय महानता का दंभपूर्ण